रविवार, 1 अगस्त 2010

बहते अश्को की ज़ुबां नही होती





बहते अश्को की ज़ुबां नही होती, लफ़्ज़ों मे मोहब्बत बयां नही होती।
मिले जो प्यार तो कदर करना, किस्मत हर कीसी पर मेहरबां नही होती।
अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना, हर चोट के निशान को सजा कर रखना।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन, अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत, फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं, यादों में हर किसी को जिन्दा रखना।
वक्त के साथ चलते-चलते, खो ना जाना ,खुद को दुनिया से छिपा कर रखना।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी, अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम, कश्ती और मांझी का याद पता रखना।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं, अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं, हर किसी से रिश्ता बना कर रखना।

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